काशी : प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने कहा कि वाराणसी-मथुरा में मंदिर थे, इन्हें तोड़ा गया, यह बिल्कुल सच है. इसका जिक्र इतिहास की कई किताबों में किया गया है. यह साबित करने के लिए किसी सर्वे, कोर्ट-कचहरी की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने गलत काम किया था, लेकिन अब 1947 की स्थिति बरकरार रखनी होगी. अगर कोई तब्दीली करनी है तो कानून बदलना होगा. 300 साल बाद हमें इन्हें दुरुस्त करने का औचित्य नहीं है.
कहा कि 300 वर्ष बाद मथुरा और काशी का मुद्दा उठाने पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि काशी और मथुरा में बदलाव कानून से ही संभव है. इतिहासकार इरफान हबीब ने यह भी कहा कि 1991 के उपासना स्थल कानून के तहत इनका मौजूदा स्वरूप संरक्षित है. इसके मुताबिक 1947 की स्थिति बरकरार रखनी होगी. अगर कोई तब्दीली करनी है तो कानून बदलना होगा. तीन सौ, चार सौ साल बाद इन्हें दुरुस्त करने का औचित्य क्या है?
इरफान हबीब ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में हजारों बौद्ध मठों को तोड़ कर मंदिर बनाए गए. क्या आप उन्हें भी तोड़ेंगे? गया का महाबोधि मंदिर इसी का उदाहरण है. वहां शैव मत के लोगों ने कब्जा कर लिया, हालांकि अब वहां हिंदू और बौद्ध दोनों ही पूजा करते हैं. इरफ़ान हबीब ने कहा कि औरंगजेब के जमाने में बीर सिंह बुंदेला ने मथुरा में बहुत बड़ा मंदिर बनवाया था. औरंगज़ेब ने मथुरा के मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बनाई. काशी विश्वनाथ में भी औरंगजेब ने मंदिरों को तुड़वा कर मस्जिद बनवाईं. इसमें कोई दो राय नहीं है, ये तारीखों में लिखा गया है. लेकिन जो काम औरंगजेब ने किया था, वही 300 साल बाद की जाए, ये तो सोचने की बात है. आर्कियोलॉजी में है, कोई भी इमारत मस्जिद हो या मंदिर हो उसे तोड़ना नहीं चाहिए. आर्कियोलॉजी के मुताबिक कोई भी इमारत 200 साल से अधिक की हो तो उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए.